परमात्मा द्वारा रचित जीव व्यवस्था चक्र विश्व जीव व्यवस्था चक्र एक ऐसा चक्र जो एक नेमि , तीन वृत्तों , सोलह अंत ( सिरों) , पचास अरो , बीस सहायक अरो , छह अष्टको , एक ही पाश से युक्त एक मार्ग के तीन विभेदो , दो निमित्त , तथा मोह रूपी या नाभि वाला हे। एक नेमि अर्थात परिधि (पृकृति) तथा तीन वृत्त १ -सत्व गुण २ -रजो गुण ३ -तमो गुण , परिधि का अंत सिरे का जोड़ सोलह कलाएं , हे। (प्रश्नोपनिषद के छठे प्रश्न के अंतर्गत चौथे , पांचवे मन्त्र में इसका उल्लेख हे) पचास अरे (विपर्यय , अशक्ति , तुष्टि , अदि पचास प्रत्यय ) अन्तः करण की वृत्तियों के पचास भेद , तथा बीस सहायक अरे (दस इन्द्रियाँ , पांच भूत , पांच प्राण )कहे गए हे। छह अष्टको के आठ -आठ भेद कहे गए हे , १- पृकृति २- शरीरगत धातु , ३-सिद्धियाँ ४- भाव ५-देवयोनियाँ ६-विशिष्ट गुण। तीन मार्ग धर्म , अधर्म अवं ज्ञान मार्ग , तथा दो निमित्त पाप और पुण्य कर्म फल हे। यह सभी मोहरूपी नाभिक क...
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अप्रैल, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
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शेष नाग के फ़न पर पृथ्वी टिकी हे , इस कथन का सम्बन्ध उपरोक्त कथन से हमारे ऋषियों का आशय हमारे शरीर में स्थित सात चक्रो से हे। जो भी अध्यात्म के बारे में थोड़ा , बहुत जानकारी रखता हे वह ये जानता हे , की हमारे शरीर में प्रमुख सात चक्र होते हे , जो हमारे पूरे शरीर (जीवन) को नियंत्रित करते हे , पहले चक्र मूलाधार के निचे हमारी रीढ़ के अंतिम छोर पर एक सर्पाकार कुंडलिनी होती हे , उसे ही शेष नाग कहा गया हे , जिनके सात फनो पर हमारा जीवन चक्र आधारित हे। 1- मूलाधार चक्र का सम्बन्ध पृथ्वी तत्व से जुड़ा होता हे , यह हमारे गुदा स्थान के समीप होता हे। 2 - दूसरे चक्र स्वाधिष्ठान से जल (पानी) तत्व का संबंध होता हे , यह हमारे शरीर के उपस्थ (जननेन्द्री) के पास होता हे। 3- तीसरे चक्र मणिपुर का संबंध अग्नि से होता हे , यह हमारे नाभि केंद्र के पास होता हे , इसके द्वारा ही हम जो खाना खाते हे , हमारे अमाशय की अग्नि द्वारा पचाया जाता हे। 4- चौथा चक्र अनाहत होता हे इसका संबंध हमारे हृदय से होता हे , ह्रदय ...
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प्राण क्या है मनुष्य के मन में यह जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि प्राण कहां से आया है। किस प्रकार से हमारे शरीर में प्रवेश करता है तथा अपना विभाग बना करके किस प्रकार से शरीर को गतिमान रखता है। यह यक्ष प्रश्न सभी के मन में कभी न कभी आता ही है। प्राण एक संस्कृत शब्द है जिसकी अंग्रेजी में कई व्याख्याएँ हैं , जिनमें "जीवन शक्ति" , " ऊर्जा" और "महत्वपूर्ण सिद्धांत" शामिल हैं। इस शब्द का इस्तेमाल हिंदू और योग दर्शन में ब्रह्मांड में मौजूद सभी प्रकट ऊर्जा को संदर्भित करने के लिए किया जाता है , जो जीवित प्राणियों और निर्जीव वस्तुओं दोनों में मौजूद है। प्राण ...