प्राण क्या है                                                                     मनुष्य के मन में यह जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि प्राण कहां से आया है।

 किस प्रकार से हमारे शरीर में प्रवेश करता है तथा अपना विभाग बना करके किस प्रकार से शरीर को गतिमान रखता है। 

यह यक्ष प्रश्न सभी के मन में कभी न कभी आता ही है। 

प्राण एक संस्कृत शब्द है जिसकी अंग्रेजी में कई व्याख्याएँ हैं, जिनमें "जीवन शक्ति", "ऊर्जा" और "महत्वपूर्ण सिद्धांत" शामिल हैं। इस शब्द का इस्तेमाल हिंदू और योग दर्शन में ब्रह्मांड में मौजूद सभी प्रकट ऊर्जा को संदर्भित करने के लिए किया जाता है, जो जीवित प्राणियों और निर्जीव वस्तुओं दोनों में मौजूद है।प्राण आत्मा से उत्पन्न होता है। जिस प्रकार मनुष्य शरीर से छाया उत्पन्न होती है, उसी प्रकार आत्मा में प्राण व्याप्त है। तथा यह मनोकृत और संकल्पादि (संकल्प) इस शरीर में आ पाता है। यह उपयुक्त प्राण आत्मा परम पुरुष (अक्षर) यानी सत्य से उत्पन्न होता है। उदाहरण के लिए, जिस प्रकार संसार में सिर तथा हाथ पाव वाले पुरुष रूप में रहते हुए ही उससे होने वाली छाया उत्पन्न होती है। उसी प्रकार इस ब्रह्म यानी सत्पुरुष में यह छाया रहती है।योगी प्राण के बारे में अधिक समझ प्राप्त करना चाहते हैं, ताकि वे अपनी ऊर्जा को बढ़ा सकें और उसमें सुधार कर सकें तथा इस प्रकार अपने स्वास्थ्य और कल्याण में सुधार कर सकें।ऊर्जा शरीर में, प्राण को नाड़ियों नामक ऊर्जा चैनलों के माध्यम से प्रवाहित कहा जाता है ।प्राण एक प्राचीन अवधारणा है और इसका उल्लेख कई हिंदू धर्मग्रंथों और ग्रंथों में किया गया है, जैसे कि उपनिषद । इन ग्रंथों में कहा गया है कि प्राण की उत्पत्ति आत्मा से होती है ।

संस्कृत के शब्द 'अन ' का अर्थ है 'गति' और 'साँस लेना', तथा 'प्र' का अर्थ है 'आगे बढ़ना', प्राण का अर्थ है 'साँस लेना', तथा यह इस विचार को संदर्भित करता है कि महत्वपूर्ण या जीवन शक्ति ऊर्जा हमेशा गतिशील रहती है।प्राण को अक्सर चक्रों के माध्यम से भौतिक शरीर, स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती के संबंध में समझा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब कोई व्यक्ति स्वस्थ और संतुलित होता है, तो प्राण सात प्रमुख चक्रों के माध्यम से स्वतंत्र रूप से प्रवाहित होता है। हालाँकि, जब रुकावटें या असंतुलन होते हैं, तो वे शारीरिक या भावनात्मक समस्याओं के रूप में प्रकट हो सकते हैं।मानव शरीर में प्राण ऊर्जा चैनलों के माध्यम से प्रवाहित होता है जिन्हें नाड़ियाँ कहते हैं। कहा जाता है कि हज़ारों नाड़ियाँ होती हैं, लेकिन मुख्य तीन हैं:-

  • इडा - नासिका छिद्र के बाईं ओर स्थित है,और नाभि केंद्र तक जाती हे, यह अंतर्मुखी, चंद्र नाड़ी है।
  • पिंगला - नासिका छिद्र के दाईं ओर स्थित है।और नाभि केंद्र तक जाती हे, यह बहिर्मुखी, सौर नाड़ी है।
  • सुषुम्ना - रीढ़ के मध्य में स्थित है। यह केंद्रीय नाड़ी है, जिसके माध्यम से कुंडलिनी जागरण की ऊर्जा प्रवाहित होती है।

माना जाता है कि प्राण शरीर में सांस के ज़रिए अंदर और बाहर प्रवाहित होता है। एक योगी अपनी ऊर्जा को बढ़ाने के लिए प्राणायाम जैसी तकनीकों का उपयोग करता है । योग आसन करने से भी प्राण को अधिक स्वतंत्र रूप से प्रवाहित करने में मदद मिलती है।हमारे शरीर में प्राण क्या है। इस पर विस्तार से चर्चा करनी चाहिए। जिस प्रकार संसार में राजा ही गांव में अधिकारियों को नियुक्त करता है। तुम इस गांव में निवास करो और अपने अधिकार का उपयोग करो। उसी प्रकार मनुष्य का प्राण भी अपने भेद स्वरूप आंख, नाक, कान आदि अन्य प्राण को अलग अलग उनके स्थानों के अनुरूप स्थापित करता है।शरीर में आत्मा अर्थात जीवात्मा हृदय यानी कमल जैसा मांस पिंड से घिरा हुआ हृदय कक्ष में रहता है। इस ह्रदय में एक सौ एक प्रधान नाडियां है। उसमें से प्रत्येक प्रधान नाडी के सौ-सौ भेद होते हैं। प्रधान नाडी के उन सौ-सौ भेदों में से प्रत्येक में बहत्तर-बहत्तर प्रतिशाखा  नाडियां है। इस प्रकार प्रधान नाडियों में प्रत्येक सौ सौ नाडियों में हजार नाडियां हैं। यह नाडियां सांस का संचालन करती है। जिस प्रकार सूर्य से किरणें निकलती है। उसी प्रकार हृदय से निकल कर सब ओर फैली हुई नाडियां द्वारा सांस से पूर्ण शरीर में व्याप्त रहती है। अतः मुख्यतः वायु ही हमारे शरीर के प्राण हे।  जबतक शरीर में प्राण वायु हे तभीतक आत्मा हमारे शरीर में स्थित हे,और हम जीवित हे। अतः लम्बी आयु के लिए प्राणवायु को लगातार संवर्धित (शुद्ध वायु ऑक्सीजनशरीर में बढ़ाते)रहो। धन्यवाद।                                                  

 

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