पूर्ण का पूर्ण से मिलन                                                                                'ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते' एक मंत्र है.  'वह पूर्ण है और यह भी पूर्ण है, पूर्ण से पूर्ण निकला हैपूर्ण से पूर्ण को निकाल लेने पर केवल पूर्ण ही शेष रह जाता है'.                                                                                पूर्ण का पूर्ण से मिलन और पूर्ण (सृष्टि) के उदय का सूत्र। महा शिवरात्रि का यही सन्देश हमारे ऋषि मुनियो ,पूर्वजो द्वारा दिया गया हे।  महाशिवरात्रि का उत्सव हमारे देश में उल्लास पूर्वक मनाया जाता हे। शिव यानि चेतना (ऊर्जा) और शक्ति यानि पृकृति के मिलन के संदर्भ में मनाया जाता हे। इस सृष्टि का निर्माण चेतना (ऊर्जा) और पृथ्वी (पदार्थ) द्वारा ही हुआ हे। आज का विज्ञान भी यही मानता हे की बिना ऊर्जा और  पदार्थो के किसी अन्य वास्तु का निर्माण संभव नहीं हे। हमारे वेदो,शास्त्रों में कई वर्षो पहले यह सिद्ध कर दिया हे। भगवान ब्रह्मा को सृष्टि का निर्माता और भगवान विष्णु को पालन कर्ता माना जाता हे। लेकिन ब्रह्मा जी को सृष्टि के निर्माण के लिया मार्गदर्शन की जरुरत हुई तो उन्होंने आदिदेव महादेव से परामर्श किया ,तब महादेव ने उन्हें अपने अर्धनारीश्वर रूप के दर्शन करवाए ,और चेतना और पदार्थ का महत्व बताया,और स्त्रीलिंग+पुर्लिंग के मिलन से सृष्टि रचने को कहा। साथ ही पृथ्वी,जल,अग्नि वायु का सहयोग लेने का मार्गदर्शन दिया।तब सभी जीव ,जंतु,पेड़ पौधे अस्तित्व में आये। केवल मनुष्य को ही ज्ञान दिया के वह  इस सृष्टि का पालन-पोषण करे। और पुरे ब्रह्माण्ड को समझने के लिए बुद्धि भी दी ,जिसकारण वह निरंतर प्रयास कर्ता रहे। लेकिन आज मनुष्य अपने उद्देश्य से भटक गया हे व् पृकृति का पालन पोषण करने की जगह विनाश ज्यादा कर रहा हे ,इस स्थिति को बदलने के लिए हमें निरंतर प्रयास करना पड़ेगा, तभी हमारी नई पीढ़ी सुरक्षित यह सकेगी। पृथ्वी ने हमें जीवन यापन के लिए भरपूर सम्पदा दी हे, लेकिन हम अपने लोभ,लालच के कारण उसका उपयोग कम बर्बाद ज्यादा कर रहे हे।जिस कारण पृथ्वी का संतुलन निरंतर बिगड़ता जा रहा हे। हमें सभी को मिलकर इसका समाधान करना पड़ेगा। लगातार जान जागरण के द्वारा ही यह सम्भव हे। आओ हम सभी मिलकर पूर्ण मन से प्रयास करे। धन्यवाद। 

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