जीवन में कैसे बदलाव लाएं आज इस युग में ९५% लोग केवल और केवल जन्म लेकर बच्चे पैदा करते हे ,खाते हे,कमाते हे,और मर जाते हे,क्या हम भी उन ९५% में से हे या बाकि ५% में जो अपना जीवन सफल बनाने क लिए कोई ऐसा कार्य करते हे जो मानवता क लिए मिसाल बन सके। हम सभी जानते हे की इस पृथ्वी पर जीवन ५ तत्वों पर आधारित हे।जिन्हे हम पञ्च महाभूत के नाम से जानते हे,१ - पृथ्वी २- जल ३- अग्नि ४- वायु ५- आकाश। यह सभी तत्व सभी जीवों का आधार हे, केवल मनुष्य के शरीर में ५ कोष होते हे १- अन्नमय कोष। २- मनोमय कोष। ३ - ज्ञानमय कोष। ४- प्राणमय कोष। ५- आनंदमय कोष। १- अन्नमय कोष :- हमारा शरीर पृथ्वी पर पाए जाने वाले अन्न द्वारा बढ़ता हे,हम अन्न के बिना ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रह सकते हे,अन्न के खाने से ही हमारा शरीर स्वस्थ रहता हे,यह शरीर हमें हमारे माता,पिता द्वारा प्राप्त होता हे,लेकिन इसमें व्रद्धि पृथ्वी द्वारा प्रदत्त खाद्द्य पदार्थो द्वारा ही होती हे,इसीलिए पृथ्वी को हम माता सामान मानते हे, क्योंकि यह हमे जीवन प्रदान करती हे ,पृथ्वीतत्व से ही हमारा अन्नमय कोष बनता हे। २ - मनोमय कोष :- यह जल के समान होता हे, जल का हमारे शरीर में लगभग ७२% हिस्सा होता हे,हम जल के बिना ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रह सकते हे,जल,तरल,गैस,और ठोस रूप में हमें मिलता हे, जैसे यह तीनो रूपों में परिवर्तित हो जाता हे वैसे ही हमारा मन भी क्षणभर में तीव्रता से इधर-उधर भटकता रहता हे स्थिर नहीं रहता हे। इसीलिए हम इसकी तुलना मनोमय कोष से कर सकते हे। ३ - ज्ञानमय कोष :- ज्ञान (विज्ञानं) यह हमारे जीवन का महत्वपूर्ण तत्व हे, बिना प्यास (पिपासा) के शोधपूर्ण कार्य नहीं कर सकते हे, इसके लिए हमें बहुत ऊर्जा (अग्नि) की जरुरत रहती हे। ऊर्जा विहीन मनुष्य जीवन में कुछ नहीं कर सकता हे।जीवन में जिस भी मनुष्य ने कुछ उपलब्धि हासिल की हे वह ज्ञान द्वारा ही की हे और उसके लिए हमारा शरीर स्वस्थ होना जरुरी हे। यह हमारे अग्नि तत्व को दर्शाता हे। ४ - प्राणमय कोष :- यह हमारे वायु को दर्शाता हे वायु का हमारे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण स्थान हे, बिना वायु के हमारा शरीर कुछ पल ही जीवित रहता हे, अगर प्राणवायु हमारे शरीर में नहीं रहेगी तो हमें मृत घोषित कर दिया जाएगा। वायु का हमारे शरीर में निरंतर प्रवाह बहुत जरुरी हे, हमें प्राणवायु प्रकृति द्वारा मुफ्त उपलब्ध होती हे, लेकिन क्या हम उसका पूरा लाभ उठा पाते हे,हम अपनी मानसिक उलझनों में ऐसे फंसे हे की हम श्वास केवल अपने पेट या हृदय तक ही ले पाते हे, अगर हम प्राणवायु से अपने सम्पूर्ण शरीर को स्वस्थ, निरोगी रखना चाहते हे, तो आज से ही हमे श्वास प्रक्रिया को ठीक करना होगा,हम श्वास जब अपने शरीर के अंदर लेते हे, तो उसे हमारे शरीर के नाभि तक ले जावे और वापस नासिका द्वारा ही वापस छोड़े,कुछ दिनों के अभ्यास से ये निरंतरता बनेगी,जब यह नियमित हो जावे तो और कोशिश करे के प्राण वायु को हम अपने मूलाधार चक्र तक ले जाकर वापस अजना चक्र तक लाकर नासिका द्वारा छोड़े, इससे ये लाभ यह होगा की हमारे पूरे शरीर में प्राणवायु का आवागमन सुचारु रूप से चलता रहेगा और हमारा शरीर स्वस्थ निरोगी रहेगा। यह प्रक्रिया ४० दिनों तक करके देखे आपको स्वयं अपने शरीर में परिवर्तन लगे तो निरंतर करे। हमारा काम आप तक यह जानकारी पहुँचाना हे,यही हमारा प्राणमय कोष कहलाता हे।इसको करते रहने से आपके पास बैठे किसी भी व्यक्ति को पता भी नहीं चलेगा की आप क्या कर रहे हे।हमारे शरीर में प्राण शक्ति मजबूत होगी तो हम किसी भी मुसीबत का सामना कर सकते हे ,कुछ वर्षो पहले कोविड १९ का सामना हमने किया ,कई लोगो ने अपने स्वजनों को खोया क्या कारण था, समझो,उनका शरीर रोगप्रतिरोधक नहीं था,अर्थात उनकी प्राण शक्ति कमजोर थी। आपको पता होगा की हजारों वर्ष पहले मनुष्यों की आयु हमसे कई गुना अधिक होती थी, तो क्या आज हम नहीं बढ़ा सकते उस समय का मनुष्य हमसे ज्यादा समझदार था, वह प्रदुषण मुक्त कैसे रहना हे जानता था, हमने अपने आसपास इतनी गंदगी फैला रखी हे की हमारी आयु निरंतर कम होती जा रही हे।
५- आनंदमय
कोष :- इससे से हमारा तात्पर्य सदा,सर्वदा आनंदमय,सुख पूर्वक जीवन जीने से
हे। यह आकाश तत्व से संबंधित हे, जब हम आनंदित,बहुत खुश होते हे, तो ऐसा लगता हे जैसे हम स्वर्ग में रहरहे हे। हमारे ऋषि
मुनियो ,पूर्वजो ने जो जीवन
पद्धति सिखाई हे वह हम भूल गए हे। माया मोह के बंधन ने हमें ऐसा जकड़ रखा हे की हम
उससे बाहर निकलना ही नहीं चाहते हे।और हम ९५% में ही रह जाते हे। अगर ५% में आना हे, तो स्वयं में परिवर्तन लाओ,अपनी प्राण-शक्ति को बढ़ाओ
इससे ही परिवर्तन संभव हे। विशेष कार्य - केवल शिक्षा क्षेत्र के लोगो से निवेदन वे अपनी कक्षा मेसे
९ छात्र चुने २ जीनियस २ साधारण २ कमजोर ऐसे ही १-१ छात्रा को लेकर केवल क्लास में
अलग से प्रयोग के तौर पर ११ दिन लम्बी श्वास का अभ्यास करावें और प्रेरित करें के
दिनभर में अधिक से अधिक अभ्यास करे,और क्या परिवर्तन आता हे महसूस करें। पहले स्वयं
करके देखे। प्रयोग से ही परिवर्तन संभव हे। कुछ करेंगे तो कुछ होग।भगवान भरोसे
बैठने से कुछ नहीं होगा। धन्यवाद।
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