यत्र पिंडे
- तत्र ब्रह्माण्डे
ब्रह्माण्ड में , में या ब्रह्माण्ड मुझमें यह तथ्य हमारे पूर्वजो ऋषि ,मुनियो ने सदियों पूर्व ही सिद्ध कर दिया था , लेकिन
इस विज्ञान को आज कितने लोग समझते हे, शायद ९९% लोग यह नहीं जानते हे, की यह सत्य हे. हमारी शिक्षा पद्धति ऐसी हे की हमें इस तथ्य
को आज तक समझाया ही नहीं गया।आज विज्ञान भी मानता हे की मनुष्य अपने जीवन में
मष्तिष्क का केवल ५ से १० % का ही उपयोग करपाता हे। बाकि व्यर्थ ही जाता हे. क्यों ? क्योकि हमारी जीवन पद्धति ही पूरी तरह से विकृत
हो गई हे । हमने पृकृति को अपने स्वार्थो से इतना दूषित कर दिया हे, की यह अब हमारे और अन्य जीवो के लिए भी कष्टमय
होती जा रही हे। हम ये तो जानते हे की हम सभी का जीवन पानी,हवा,पृथ्वी,अग्नि,आकाश इन पांच तत्वों के कारण ही हे ,क्या यह भी जानते हे की ये पांचो तत्व हमारे शरीर में भी
रहते हे.इस बारे में कभी सोचा हे,सूर्य,चन्द्रमा सहित सारा ब्रह्माण्ड हमारे ही अंदर
ही हे.सूर्य हमें ऊर्जा व चन्द्रमा हमें शीतलता देता हे, यह ऊर्जा हमारे शरीर में कैसे आती हे, कभी जानने की कोशिश नहीं की होगी.हमारे शरीर
में ये पांचो तत्व संतुलित होते हे, तभी हमारा शरीर स्वस्थ
रहता हे अन्यथा हमें बीमारियां घेर लेती हे.कभी इस पर विचार किया हे ? आओ इसे समझने की कोशिश करते हे। पहले हम शरीर की रचना को समझते हे,हमारे शरीर में ५ ज्ञानेन्द्रियाँ ५
कर्मेन्द्रियाँ ५ पञ्च प्राण, मन,बुद्धि ,चित्त,अहंकार होते हे. ज्ञानेन्द्रियाँ १-आँख,कान,नाक,जुबान ,त्वचा. ५ -कर्मेन्द्रियाँ हाथ,पैर, मुंह,गुदा,उपस्थ.(मल,मूत्र द्वार) मुख्य पञ्च
प्राण- उदान,अपान,व्यान,समान,प्राण. ज्ञानेन्द्रियो के
कार्य १-आंख - इनके द्वारा हम इस सृष्टि को देखते हे,और हमें हर वास्तु के रूप रंग का ज्ञान होता हे.२- कान -
जिससे हम शब्दों को सुनते हे और समझते हे.३- नाक - यह हमारी बहुत ही महत्वपूर्ण ज्ञानेन्द्रिय हे,इसके द्वारा ही हम प्राणवायु ग्रहण करते हे जिससे हमारा शरीर हमेशा सक्रीय
रहता हे,क्या आपने कभी अपने नाक
के पास ऊँगली लगाकर साँस कैसे आती,जाती हे देखा हे,एक बारलेजाकर देखे एक छिद्र से ज्यादा गति से
हवा बाहर आती हे एक से कम. हमारे नाक के दोनों छिद्रो में हर ४५ मिनट में बारी
-बारी से वायु का आवागमन निरंतर चलता रहता हे। इस पर हमारे पूर्वजो ,ऋषि,मुनियो ने बहुत शोध किया और हमारे दाहिने छिद्र
से जो वायु का आवागमन होता हे उसे पिंगला नाड़ी ( सूर्य स्वर ) और बाये छिद्र को
इड़ा नाड़ी (चंद्र स्वर) नाम दिया। यह हमारे शरीर का तापमान संतुलित रखती हे। अगर
किसी व्यक्ति को लो ब्लड प्रेशर की शिकायत होती हे तो उसे शरीर में गर्मी को बढ़ाने
के लिए सूर्य नाड़ी द्वारा श्वास ज्यादा लेने की सलाह दी जाती हे,इसके विपरीत अगर उच्च ब्लड प्रेशर होता हे तो चंद्र नाड़ी से
श्वास ज्यादा लेने की सलाह दी जाती हे,जिसकारण उसे शीघ्र आराम
मिलता हे। नाक से द्वारा जब हमारे शरीर में श्वास अंदर जाती हे तो यह हमारे सौर
ऊर्जा चक्र तक पहुंचनी चाहिए जो की हमारे नाभि के पीछे स्थित हे। यही से यह हमारे
पुरे शरीर की लगभग ७२००० सूक्ष्म नाड़ियों में पहुँच कर हमारे शरीर में प्रवाहित
होने वाले खून को निरंतर प्रवाहित करती हे। पञ्चप्राण के द्वारा यह पुरे शरीर के
अंगो को स्वस्थ रखने में सहायक होती हे। हमारे शरीर के जिस हिस्से में वायु और
ब्लड का प्रवाह बाधित होगा उस अंग में बीमारियाँ होनी शुरू हो जाती हे। अतः हमारे
शरीर को पूर्ण स्वस्थ रखने के लिए नासिका द्वारा ली जाने वाली वायु (ऊर्जा)
अतिआवश्यक हे। ४- जुबान - हमारी जुबान हमें सभी चीजों का स्वाद (ज्ञान) बताती हे, और शब्दों को कैसे बोलना हे इसका कार्य जुबान द्वारा ही हम
कर सकते हे। ५ - त्वचा - त्वचा द्वारा हमें किसी भी वस्तु को
छूकर पता चलता हे की यह ठंडी हे या गर्म हे, तरल हे या ठोस हे। इस तरह
ये हमारी ज्ञानेन्द्रिय कहलाती हे। इसी प्रकार हमारी कर्मेन्द्रियों के भी अलग -
अलग कार्य होते हे। हमारे शरीर में ब्रह्माण्ड में पायी जाने वाली कई वस्तुएं पायी
जाती हे ,लेकिन हम खोज नहीं पाते हे।कोशिश करने वाले की
कभी हार नहीं होती, हम भी खोज जारी रखते हे, आप भी कोशिश करते रहो। धन्यवाद।
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