ऐ आय
और हम
आज हम ऐ आय पर निर्भर
होते जा रहे हे ,और सभी देश ऐ आय को बढ़ावा
दे रहे हे ,जिससे ज्यादा तेज गति से
विकास के काम हो सके,लेकिन यह हमें विकास के
साथ विनाश की और भी लेजा सकता हे ,अगर इसका दुरूपयोग होने
लगेगा। आज जितने भी इंटरनेट पर प्लेटफार्म हे, उन पर अधिकतर ज्ञान ,विज्ञान कम फालतू बातें मनोरंजन के नाम से ज्यादा आती हे। ऐ
आय भी हमें वही जानकारी देता हे जो इसमें हमारे द्वारा सेव की जाती हे। क्योकि यह
सोच,समझ नहीं सकता उस जानकारी
के बारे में सही हे या गलत आंकलन नहीं कर सकता हे। इसमें अपनी भावनात्मक सोच,बुद्धि नहीं होती हे। यह वही बता सकता हे जो
जानकारी हम इसे देते हे। मानलो कोई जानकारी १०० लोगो द्वारा गलत भेजी गई होगी तो
वही बताएगा उसको सही नहीं कर सकता हे। लेकिन क्या आप जानते हे, परमात्मा ने हमारे शरीर में स्वचालित ऐ आय
प्रणाली पहले से ही डाली हुई हे। क्या कभी सोचा हे ये हमारे शरीर में हमेशा काम करती हे,उसे हम कितना महत्व देते हे। अगर आप किसी भी समय अपनों या
अन्य विषयो पर सोचते हो तो हमारे दिमाग में तुरंत वही सभी बातें याददाश्त के रूप
में स्वतः आती हे।जैसे की हम ऐ आय से पूछते हे की यह क्या हे। यह कैसे होता हे ?
कोई छात्र परीक्षा देने बैठा हे और कोई प्रश्न
का उत्तर नहीं आ रहा हो तो उसका ध्यान (मन) तुरंत उस पुस्तक पर जाता हे और वह
सोचता हे की यह मेने पढ़ा तो हे लेकिन कोनसे पेज पर लिखा हे याद करके उत्तर लिख
देता हे। हम कभी बाजार सामान लेने जाते हे और कोई पुराना परिचित मिलजाता हे तो
हमें तुरंत याद आ जाता हे की यह तो वो हे। लेकिन आजकल मोबाईल अदि संसाधनों ने
हमारी याददाश्त को इतना दुर्बल बना दिया हे की हमें कभी अपना मोबाईल नंबर भी याद
नहीं रहता हे। अब हमारी याददाश्त भी मशीनों में सेव होने लगी हे। क्या कभी सोचा हे
की ऐसा क्यों हो रहा हे ????
हमारे पूर्वजो ,ऋषि मुनियो ने हमें इनसभी समस्याओं के समाधान
के लिए प्राणायाम के रूप में ऐसी विद्या (चार्जर)
दी हे जिसके द्वारा हम अपनी याददाश्त को बढ़ा सकते हे,और अपने सोचने,समझने की शक्ति को असीमित
बढ़ा सकते हे। हमारे शरीर में मेमोरी कार्ड (दिमाग) और हार्ड डिस्क (मदर बोर्ड)
दोनों मौजूद हे ,केवल हमें इन्हे चार्ज करते रहना हे। हमारा देश
ऋषि परम्परा का देश हे ,आपने श्री धीरेन्द्र शास्त्री का नाम सुना होगा
(बागेश्वर धाम सरकार) वो बिना किसी जानपहचान के अपने भक्तो का नाम और समस्या बता
देते हे ,ऐसा कैसे होता हे ? यह ज्ञान हमारे शास्त्रों में निहित हे ,घोर तपस्या से यह संभव हे। लेकि हम तो रोजी,रोटी ,कपडा,मकान से ही ऊपर नहीं आ
पाते हे तो ये तो बहुत कठिन हे। लेकिन बिना किसी कठिन तपस्या के आप अपनी याददाश्त
तो बढ़ा ही सकते हे। केवल आपको जो आप श्वास लेते हे उसको सुधारना हे ,अधिकतर लोग श्वास केवल पेट या फेफड़ो तक ही लेते हे, और वापस बाहर कर देते हे। आपको इसमें थोड़ा
परिवर्तन करना हे और श्वास को नाभि केंद्र तक लेजाना हे और वापस छोड़ना हे इससे श्वास
(प्राणवायु) हमारे पुरे शरीर तक पहुंचेगी और हमारे शरीर के साथ हमारी याददाश्त भी
ठीक होगी।लगातार ४० दिन तक यह अभ्यास दिनभर दोहराते रहेंगे तो निश्चय ही आप की
याददाश्त के साथ शारीरिक स्तिथि भी सुधरेगी। और ऐ आय की सुविधा आप के अंदर ही
विकसित होगी आप ऐ आय पर निर्भर नहीं होंगे वो आप पर निर्भर होगा। धन्यवाद।
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