मनुष्य जन्म हमारे ऋषियों ने अपने घोर तप से सदियों पूर्व यह जान लिया था की मनुष्य
स्थूल शरीर के साथ दो शरीर अपने साथ और लाता हे, एक सूक्ष्म जिसमे उसके साथ आत्मा,मन ,बुद्धि और अहंकार व दूसरे
शरीर को कारण शरीर कहते हे उसमे उसके पूर्व जन्म के कर्मो का लेखा-जोखा होता हे।
स्थूल शरीर हमें दिखाई देता हे ,लेकिन सूक्ष्मऔर कारण
शरीर हमें दिखाई नहीं देते हे,हम केवल महसूस (आभास) कर
सकते हे।उदाहरण के लिए आप नया मोबाईल लाये वह स्थूल शरीर हे उसको चार्ज करोगे तो
उसमे आत्मा यानि प्राण ऊर्जा के साथ चलाने की प्रक्रिया शरू होगी,वह उसका सूक्ष्म शरीर हुआ,आगे हम उसमे देखेंगे की कुछ सॉफ्टवेयर उसमे
पहले से ही मौजूद हे यानि उसकी मेमोरी (याददाश्त) तो यह हुआ उसका कारण शरीर। अब
जैसे जैसे हम उसका उपयोग करते हे वैसे वैसे उसकी मेमोरी में बढ़ोतरी होती रहती हे
ठीक वैसे जैसे हमारी उम्र के साथ साथ मेमोरी (याददाश्त) बढ़ती हे। यह तो एक उदाहरण
हुआ लेकिन क्योकि मनुष्य में अपनी स्वयं की कई विशेषताएं होती हे,जो मानव द्वारा निर्मित मोबाईल में नहीं होती
हे। हमारा जन्म परमात्मा द्वारा रचित सृष्टि में विशेष कार्यो के लिए होता हे।
लेकिन हममें से अधिकतर मनुष्य अपने कर्मो को भूल कर इस सृष्टि के माया ,मोह में उलझकर अपना जीवन व्यर्थ नष्ट करलेते
हे।और जन्म-मरण के चक्रव्यूह में फंसे रहते हे। सनातन धर्म ही एक ऐसा धर्म हे
जिसमे इस जन्म-मरण से कैसे मुक्त हो यह ज्ञान हमारे ऋषि-मुनियो ने हजारो वर्ष
पूर्व ही देदिया था। लेकिन हम ने उनकी बातो को कभी गंभीरता से लिया ही नहीं,उसीके परिणाम स्वरूप आज दुनिया में 95% मनुष्य इसी माया,मोह के चक्र में फंसे रहते हे,पैदा होते हे,सेक्स करते हे बच्चे पैदा
करते हे पैसा कमाते हे और मर जाते हे। (जानवरो की जिंदगी)
क्या वो 5% लोग जो इस संसार में
आकर कुछ नया करके अपना और सभी के सुखमय जीवन के लिए कार्य करते हे क्या अलग से
पैदा होते हे नहीं वो भी हमारे बीच से ही आते हे लेकिन वो अपने जीवन का उद्देश्य
निर्धारित करते हे। वो समझ रहे होते हे की जिस परमात्मा ने हमें जीवन दिया हे हमें
उसकी बनायीं इस प्रकृति को सुन्दर,खुशहाल बनाना हे। परमात्मा ने इस प्रकृति में
हमें जीवन को खुशहाल जीने के सभी साधन दिए हे लेकिन साथ ही कर्म को प्रधान बनाया
हे ,बिना शुद्ध कर्म के इसका उपयोग करोगे तो परिणाम
भोगना पड़ेगा। मनुष्य को 5 कर्मेन्द्रियाँ ,5 ज्ञानेन्द्रियाँ, रूप,रस,गंध,शब्द,स्पर्श मन ,बुद्धि, अहंकार अदि सभी का सहायक
ज्ञान दिया हे ,जिसके अनुसार हम सही निर्णय लेकर अपने कर्मो को
शुद्ध करके इसका उपभोग करेंगे तो अपना सुखमय जीवन व्यतीत करते हुए इस जीवन चक्र से
मुक्त हो सकेंगे। अन्यथा इसी चक्र में बार-बार फंसते ही रहेंगे। धन्यवाद।
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