विश्व पटल पर आज का मानव                                                                            आज विश्व में जो अशांति फैली हुई हे उसका कारण क्या हो सकता हे ? यह प्रश्न आज सभी बुद्धिजीवियों के समक्ष विकराल रूप से खड़ा हे। ऐसी स्तिथि क्यों आती हे इस पर मंथन कोई नहीं करना चाहता हे,सभी अपने-अपने स्वार्थ साधने में लगे हुए हे,किसी को अपना अहंकार ,अकूत धन दौलत,शस्त्रों की शक्ति का अहंकार हे तो कोई अपने आप को दुनिया का सबसे ताकतवर देश का मालिक मान बैठा हे। सनातन धर्म जो की विश्व का पहला पूर्ण धर्म हे, उसमे मानव को प्रकृति का रक्षक और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का ज्ञान प्राप्त करसकने वाला बताया गया हे। यत्र पिण्डे तत्र ब्रहाण्डे अर्थात जो यह मानव रूपी पिंड हे वह सारे ब्रह्मांड का ही सूक्ष्म रूप हे। और परमपिता परमात्मा ने इस प्रकृति में हमें जन्म ही इसीलिए दिया हे की हम इसकी रक्षा ,सेवा,विस्तार करें। आज मानव ही मानव का दुश्मन होगया हे,कोई भी किसी की खुशहाली नहीं देखना चाहता क्या कारण हे ? आज हमारा सोचने समझने का स्तर इतना गिरगया हे की हमें अपने स्वार्थ के आलावा कुछ भी नज़र नहीं आता हे। हम अपने धर्मगुरुओं ,समाज सुधारको के संदेशो को भी भूल गए हे जिनका एकमात्र सन्देश प्रेम,सदाचार,भाईचारे का रहा हे। हम बातें तो बड़ी -बड़ी करते हे लेकिन आने वाली पीढ़ी को इस पृथ्वी पर क्या मिलेगा ? सभी दूर गंदगी,विनाश के ढेर,प्रदूषित वातावरण जहाँ साँस लेना भी मुश्किल होगा।ऐसे वातावरण में जहाँ हम खुद ही सुरक्षित नहीं हे वो कैसे सुरक्षित रह सकेंगे।दिन-रात,अच्छा -बुरा,सत्य-असत्य,पाप –पुण्य, अँधेरा-प्रकाश,सुख-दुःख आदि ये सभी शब्द एक दूसरे के विपरीत लगते हे ,लेकिन एकदूसरे के पूरक हे। अगर इनमे से एक नहीं हो तो दूसरे का महत्व नहीं रहता हे। अगर दिन ही रहेगा तो रात का महत्व समाप्त हो जायगा,सब अच्छा होगा तो बुराई समाप्त हो जायगी,सत्य का ही बोलबाला होगा तो असत्य का स्थान ही नहीं होगा। जीवन नीरस होजाएगा। जैसे शरीर रूपी रथ के दो पहिये समान दिशा में चलेंगे तो अपने गंतव्य तक पहुंचेंगे। परमपिता परमात्मा ने यह सृष्टि बनाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा था की दोनों का समान महत्व हो। परमात्मा ने हमें जीवन के साथ इस प्रकृति और पूर्ण संसार का ज्ञान देने के लिए हमारे शरीर में ५ ज्ञानेन्द्रियाँ ,५ कर्मेन्द्रियाँ ५ तन्मात्राएँ,मन,बुद्धि,अहंकार ये १८ विशेष तत्व दिए हे,जिनकी मदद से हम परमात्मा की सम्पूर्ण  व्यवस्था को समझ सके। यह सनातन सभ्यता का महत्वपूर्ण ज्ञान हे,लेकिन हमारी शिक्षा पद्धति ऐसी नहीं हे की हम अपने बच्चो को यह ज्ञान दे सके। हमारी शिक्षा पद्धति हमें बाहरी संसार का ही ज्ञान कराती हे ,हमारे अंदर जो ज्ञान का भंडार भरा पड़ा हे उसकी और बिलकुल भी नहीं बता सकती। जो ज्ञान हमारे ऋषि-मुनियो,पूर्वजो ने दिया हे वही शिक्षा (ज्ञान)  हमें इस समस्या से छुटकारा दिला सकता हे। अब भी समय हे ऐसा कहते हे की जब तक सांस हे तब तक आस हे, जब जागो तभी सवेरा  हम भूल सुधार सकते हे। धन्यवाद    

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट